माली सैनी समाज का इतिहास अति प्राचीन, गौरवमयी तथा श्रम की साधना एवं महत्वत्ता का दस्तावेज है। वैदिक संस्कृति व परम्परा के अन्तर्गत माली सैनी समाज प्राचीन काल से ही श्रमनिष्ठ, सेवाभावी, परोपकारी तथा सरल स्वभाव का धर्म परायण समाज रहा है जो प्रकृति के हृदय पर्यावरण की कोख और देशी अस्मिता से सम्पर्क में रहा है और जिसने अपने परिश्रम, मानवीय कर्मों से परिपूर्ण जीवन के आधार भारतीय समाजों में अपना एक विशिष्ट स्थान स्थापित किया है। ठेठ भारतीय ग्रामीण संस्कृति व जमीन से जुड़ा यही वो मेहनतकश समाज है जिसने हाड़-तोड़ परिश्रम कर अपने शरीर को जला-गलाकर शोषित होकर भी पूर्ण निष्काम भावना से पर हितार्थ कार्य करता रहा।
भारतीय लोक परम्परा और संस्कृति में रचे-बसे विचारों से मानवीय व प्रगतिशील माली सैनी समाज में ही भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक, महाराज शूरसेन, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, सिकंदर को टक्कर देने वाले महाराजा पोरस सैनी, महा योद्धा आल्हा उदल, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत ज्योति बा फूले, भारत की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्री बाई फूले जैसे समाज सुधारक और श्री लिखमीदास जी जैसे संत, बल्लभगढ़ रियासत के सेनापति दादा गुलाब चंद सैनी, बिहार में सामाजिक क्रांति के सूत्रधार बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा, हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद कुशवाहा, परमवीर चक्र विजेता कैप्टन गुरु वचन सलारिया, परमवीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह सैनी, चंडीगढ़ राॅक गार्डन के निर्माता पद्मश्री नेकचन्द सैनी, भारत में बाघों की जनसंख्या एवं उनके अस्तित्व को बचाने के लिए कार्य करने वाले पद्मश्री कैलाशचंद सांखला, संत सावता माली, अपूर्व त्यागी माता गोराधांय, महिला संत अजनेश्वर जी महाराज सहित ज्ञात अज्ञात सैकड़ों महापुरुषों ने जन्म लिया है अभी भी बहुत से महापुरुषों के बारे में नहीं जान सके है। ... Read More